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कविता

मकई के दाने का वजन

मार्तिन हरिदत्त लछमन श्रीनिवासी

अनुवाद - पुष्पिता अवस्थी


मेरी हथेलियों में मकई के दाने का वजन है
हवा, उसकी सुनहरी पारदर्शी पन्‍नी उड़ाकर ले जाती है।
और छितरा देती है पहाड़ियों पर
बच्‍चों की तरह खेलती है वह
हवाओं से दूर पलटकर
हमें इसका कोई डर नहीं है
मुक्‍त होकर देखते हैं
नवजन्‍म के जीवन को
जिसे बनाए रखते हैं
हर सड़क पर घर है
हर वृक्ष गगन चूमना चाहता है
और गाता है गाना
बहरों के लिए नहीं
हम सबके लिए, हर चीज एक संवेदनशील अर्थ है।

मेरी हथेलियों में मकई के दाने का वजन है
हवा, उसकी सुनहरी पारदर्शी पन्‍नी उड़ाकर ले जाती है
मैं बँधे गट्ठर को खोलता हूँ
और देखता हूँ सब जगह उसे
जिसे देखा-पाया है।
अनाज वर्ष-दर-वर्ष चलते चले गए
हमदोनों के दु:ख पके हुए फल की तरह हैं
आनंद को अधिक गहराई से अनुभव किया
मिट्टी के लिए
अधिक ताकत से बँधे हम
पवित्र करनेवाले दु:ख के घाव के साथ
बँधे हम आपस में।

 


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